
Musafir Shayari in Hindi | 200 मुसाफिर शायरी हिंदी में
Musafir Shayari in Hindi | मुसाफिर शायरी हिंदी में | Musafir Shayari in Hindi Two Line | अजनबी मुसाफिर शायरी | Musafir Shayari Rekhta Hindi | अजनबी हिंदी शायरी शायरी | हिंदी में मुसाफिर शायरी
Musafir Shayari in Hindi
मुझे पढने की ज़द्दोज़हद न कर ए मुसाफिर
न कुरेद मेरे सोये वज़ूद को यूँ बेवजह।
जो तेरे लिए किस्सा है वो मेरी कहानी है
जो तू पढकर गुज़रेगा वो मुझे निभानी है।।
तुम मुझसे मेरा क्या छीन पाओगे
खाली हाथ मै लौट जाता हूँ
जो भी मिला सब कुछ छोड़ जाता हूँ
ये दुनिया मेरे किस काम की
बस टहलने जरा सा यहाँ मै आता हूँ.
कस्ती के मुसाफिर ने समुंदर नहीं देखा,
आँखों में रहे पर दिल में उतर कर नहीं देखा,
पत्थर समाज द हमें चाहने वाले,
पर हम तो मौम थे, किसी ने छू कर ही नहीं देखा…
मर मर के मुसाफिर ने बसाया है तुझे रुख
सबसे फेर के मुह देखा है तुझको तुझसे
लिपट कर ना सू ए कबरा जिंदगी देके
मैंने पाया है तुझे।
होगा मुसाफिर जो जहां में आएगा सफर का जहां
मुक़ाम छोड जाएगा… इस सफर में होते हैं
साथ मुसाफिर बहुत कोई किसी के साथ ना
आया ना जाएगा….
Musafir Shayari Rekhta Hindi
मुसाफिर की नजरें बुलंदी पे थी मगर रास्ते
सब धलानों के थे हम को मालुम है जन्नंती
की हकीकत लेकिन; दिल को खुश रखने को
ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है!
इतनी टूट गई हुं की छूनी से बिखर जाऊंगी…
अब अगर और दुआ दोगे तो मार जाऊंगी…
पूंछ के मेरा पता वक्त ज़या ना करो मैं तो
मुसाफिर हूं ना जाने किस तरफ जाऊंगी..
ये कैसी मजबूरी है मुसाफिर मुल्की है
मुझे ना दिन को आराम है, और ना रात को चैन
अपनों से और दोस्तों से दूर
रह रहे हैं हम एक उदासी सी जिंदगी है।
मुसाफिर मंजिल से करीब नहीं तो क्या,
किसी हमसफ़र की उम्मीद तो है..
आपको नहीं पसंद हमारा कलाम तो क्या,
जमाना आपसे तो नहीं है..
जिद्द थी मेरी आगे बढ़ते रहने की
चाहत थी सिर्फ मुझे सफर की
कोई उम्मीद ले गया मुझसे
तो कोई दिल के टुकड़े कर गया मेरे
ये दुनिया वैसे मेरे कुछ काम की नहीं थी
मैंने हर आने जाने वाले से
एक नई दुनिया
बसाने के बारे में बात की.
Musafir Shayari in Hindi
अजनबी राहों के अजनबी मुसाफिर
आ कर मुझसे पूछ बैठा है रास्ता बता दो गे
अजनबी राहों के, अजनबी मुसाफिर सुन
रास्ता कोई भी हो, मंज़िले नहीं मिलती
मंज़िलें तो धोखा हैं, मंज़िलें जो मिल जायें
जुस्तुजू नहीं रहती, ज़िन्दगी को जीने की
आरज़ू नहीं रहती ..
बदलते हैं जो मुसाफिर जिंदगी के हर वक्त,
उनको कोई ईमान-धर्म नहीं होता,
लगते हैं जो चेहरे मासूम,
वो कभी किसी का सनम नहीं होता।
मैं मुसाफिर हूं सदा सुनके ठहर जाउंगा !
राह रोको ना मेरी रुक के बिखर जाउंगा!
कौन मंजिल है किधर कैसा खड़ा अपना,
वक्त लेजाय जहां बस मैं उधार जाउंगा !
बस है वक़्त से पाबंध द हम दोस्त,
जुनून-ए-इश्क तो हम भी कर सकते थे…
बन के रह गए इक मुसाफिर रहूं पे में,
रांझा, महिवाल, मिर्जा हम भी बन सकते हैं…
Musafir Shayari in Hindi
मैं हूँ बेवफ़ा मुसाफिर मेरा नाम बे-बसी है
मेरा कोई भी नहीं है जो गले लगा के रोये
……
मेरे पास से गुज़र कर मेरा हाल तक न पूछा
मैं यह कैसे मान जाऊँ के वो दूर जा के रोय
……
शब्-ऐ-ग़म की आप बीती जो सुनाई अंजुमन में
कई सुन के मुस्कुराये कई मुस्कुरा के रोये..
असीं मुसाफिर दो पल दे , पानी वांग वह जाना
असीं वांग फूला पतझड़ विच झड़ जाना
की होया यह तंग करदे आ तेनु
इक दिन तेनु बिन दस्स्याँ ही तुर जाना.
हसना हमारा किसी को गवारा नहीं होता,
हर मुसाफिर जिंदगी का सहारा नहीं होता,
मिलते हैं बहुत लोग है तन्हा जिंदगी में,
पर हर दोस्त तुमसे प्यारा नहीं होता…
वो अपने आप से इश्क़ कराने में मशहूर है, कि.
वो अपने आप से इश्क़ कराने में मशहूर है,
और हमे उनसे इश्क़ हो गया क्या इसमें भी
हमारा कसूर है।
Musafir Shayari in Hindi
उसकी बात की कशिश में उलझ गये हैं…
क्या सुलझे हैं जरा सा और बिखर गये हैं…
आँखों से कह जाता है वो कई किस्से…
क्या इश्क़ है जरा सा और महक गये हैं…
हम तो ख्वाबो की दुनिया में बस खोते गये,
होश तो था फिर भी मदहोश होते गये,
उस अजनबी चेहरे में क्या जादू था,
न जाने क्यों हम उसके होते गये..!!
स्पर्श उसका सीधे मेरी रूह तलक़ चला जाता है
जाने कैसे वो मेरे दिल का हाल जान लेता है.
…….
कभी कहा नहीं उससे कुछ मैंने कभी
फिर भी वो जाने कैसे मेरे जज्बात जान लेता है
……..
इश्क़ की कोई जुबां नहीं होती सुना है हमने
मगर इश्क़ में अहसास और विश्वास
कमाल का होता है…..
ये कैसी मजबूरी है मुसाफिर मुल्क में दिन को आराम है,
और ना रात को चैन अप्नू से और दोस्ती
से दूर रह रहे हैं हम एक उदासी सी जिंदगी है।
Musafir Shayari Rekhta Hindi
मुसाफिर हु मै , बस चलना हू जनता,
कभी उस शहर, कभी उस शहर,
बस मंजिल के निशान भापता !
कही खुदसे बाते करता,
कभी ओरो को देखता सोचा,
जो रास्ते में मिलते हैं, उनसे मेरा क्या वस्ता!
बस इस वक्त से पाबंध थे हम ये दोस्त जूनून-ए-इश्क
तो हम भी कर सकते थे बन के रह गए एक मुसाफिर
इन रहूं पे, रांझा, मिर्जा हम भी बन सकते थे.
बदलते हैं जो मुसाफिर जिंदगी के हर वक्त,
उनको कोई ईमान नहीं होता,
लगते हैं जो चेहरे मासूम,
वो कभी किसी का सनम नहीं होता।
वो अपने आप से इश्क़ कराने में मशहूर है, कि.
वो अपने आप से इश्क़ कराने में मशहूर है, और हमे उनसे
इश्क़ हो गया क्या इसमें भी हमारा कसूर है।
ये कैसी मजबूरी है मुसाफिर मुल्क में दिन को आराम है,
और ना रात को चैन अप्नू से और दोस्ती
से दूर रह रहे हैं हम एक उदासी सी जिंदगी है।