माँ की ममता शायरी | Ma Ki Mamta Shayari in Hindi | माँ की ममता शायरी | मां के लिए शायरी हिंदी | Maa par Shayari | जिसकी माँ नहीं होती शायरी | माँ की ममता पर शायरी हिंदी में | Maa ki Mamta Shayari in Hindi.
Ma Ki Mamta Shayari in Hindi
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।
न जाने क्यों आज के इंसान इस बात से अनजान हैं
छोड़ देते हैं बुढ़ापे में जिसे वो माँ तो एक वरदान है.
नींद भी भला इन आँखों में कहाँ आती है,
एक अर्से से मैंने अपनी माँ को नहीं देखा।
अभी ज़िन्दा है मां मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है.
माँ से बड़ा कोई,
नहीं मां से ज्यादा प्यार करने वाला कोई नहीं,
माँ की तरह परवाह करने वाला कोई नहीं।
मुझे माफ़ कर मेरे या खुदाझुक कर करू तेरा सजदा
तुझसे भी पहले माँ मेरे लिएना कर कभी मुझे माँ से जुदा!
कौन कहता है के आसमाँ का अन्त नही होता है
देख लो आ से शुरू आखिर माँ पे खत्म होता है.
मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दी,
सिर्फ एक कागज़ पर लफ्जे माँ रहने दिया.
ख़ुदा ने ये सिफ़त दुनिया की हर औरत को बख्शी है,
कि वो पागल भी हो जाए तो बेटे याद रहते है।।
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊंमां से
इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं.
भूख तो एक रोटी से भी मिट जाती माँ अगर थाली
की वो एक रोटी तेरे हाथ की होती.
मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दी,
सिर्फ एक कागज़ पर लफ्जे माँ रहने दिया.
मैं रात भर जन्नत की सैर करता रहा यारों
सुबह आँख खुली तो सर माँ के कदमों में था.
अपनी माँ को कभी न देखूँ तो चैन नहीं आता है,
दिल न जाने क्यूँ माँ का नाम लेते ही बहल जाता है।
कभी मुस्कुरा दे तो लगता है जिंदगी मिल गयी मुझको,
माँ दुखी हो तो दिल मेरा भी दुखी हो जाता है।
ज़िन्दगी में ऊपर वाले से इतना जरूर मांग लेना की,
माँ के बिना कोई घर ना हो और कोई माँ बेघर ना हो।
भूल जाता हूँ परेशानियां ज़िंदगी की सारी,
माँ अपनी गोद में जब मेरा सर रख लेती है।
ख़ुदा ने ये सिफ़त दुनिया की हर औरत को बख्शी है,
कि वो पागल भी हो जाए तो बेटे याद रहते है.
यूँ तो मैंने बुलन्दियों के हर निशान को छुआ,
जब माँ ने गोद में उठाया तो आसमान को छुआ।
सर पर जो हाथ फेरे तो हिम्मत मिल जाये,
माँ एक बार मुस्कुरा दे तो जन्नत मिल जाये।
सीधा साधा भोला भाला मैं ही सब से सच्चा हूँ,
कितना भी हो जाऊं बड़ा माँ आज भी तेरा बच्चा हूँ।
जिसके होने से मैं खुद को मुक्कम्मल मानता हूँ,
में खुदा से पहले मेरी माँ को जानता हूँ।
आज रोटी के पीछे भागता हूँ तो याद आता है
मुझे रोटी खिलाने के लिए माँ मेरे पीछे भागती थी.
उसने मुझे एक थप्पड़ मारा और खुद रोने लगी
सबको खिलाया और खुद बिना खाए सोने लगी.
ना जाने माँ क्या मिलाया करती हैं आटे में
ये घर जैसी रोटियाँ और कहीं मिलती नहीं.
ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं
इस जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते हैं.
माँ तेरे दूध का हक़ मुझसे अदा क्या होगा
तू है नाराज तो खुश मुझसे खुदा क्या होगा.
हजारों गम हों फिर भी मैं ख़ुशी से फूल जाता हूँ
जब हंसती है मेरी माँ मैं हर गम भूल जाता हूँ.
उसके होंठों पे कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस इक माँ है जो कभी खफा नहीं होती।
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकान आई,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई।।
मेरे शब्दों में इतनी शक्ति नहीं है कि मैं माँ
शब्द को पूरी तरह से समझा सकूं।
कभी मुस्कुरा दे तो लगता है जिंदगी मिल गयी मुझको,
माँ दुखी हो तो दिल मेरा भी दुखी हो जाता है।
जब तक रहा हूं धूप में चादर बना रहामैं अपनी मां
का आखिरी ज़ेवर बना रहा.
पहाड़ो जैसे सदमे झेलती है उम्र भर लेकिन,
इक औलाद की तकलीफ़ से माँ टूट जाती है।
हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए माँ !
हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे.
जब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की
‘रानी ’माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है.
बहुत बुरा हो फिर भी उसको बहुत भला कहती है
अपना गंदा बच्चा भी माँ दूध का धुला कहती है।
चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।
गिन लेती है दिन बगैर मेरे गुजारें हैं
कितने भला कैसे कह दूं कि माँ अनपढ़ है मेरी.
सख्त राहों में भी आसान सफ़र लगता है,
ये मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है।
ऐ अंधेरे! देख ले मुंह तेरा काला हो गया
माँ ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया.
पूछता है जब कोई दुनिया में मोहब्बत है कहाँ,
मुस्कुरा देता हूँ और याद आ जाती है मांँ।
चलती फिरती आंखों से अजां देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी लेकिन मां देखी है।
सख्त राहों में भी आसान सफ़र लगता है
ये मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है.
मांग लूँ यह मन्नत की फिर यही जहाँ मिले फिर वही
गोद फिर वही माँ मिले.
हालातों के आगे जब साथ ना जुबौं होती है,
पहचान लेती है खामोशी में हर दर्द वो सिर्फ ” माँ ” होती है।
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी मां कहते हैं.
घुटनों से रेंगते-रेंगते जबपैरों पर खड़ा हो गया,
माँ तेरी ममता की छाँव में,जाने कब बड़ा हो गया।
शहर में जाकर पढ़ने वाले भूल गए
किसकी माँ ने कितना ज़ेवर बेचा था.
जिस के होने से मैं खुदको मुक्कम्मल मानती हूँ ,
मेरे रब के बाद मैं बस अपने माँ बाप को जानती हूँ.
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से,
बासी भी हो गई है, तो लज़्ज़त वही रही।